Why Bihar Flood every year | Reason | Solution | Case Study | Hindi
Why Bihar floods every year in Hindi
- क्या आपको पता बाढ़ आने से बिहार का 73.06 % एरिया दुब जाता हैं।
- बिहार में 1980 से आज तक बाढ़ के कारन 9500 लोगों की मौत हो चुकी हैं।
- वर्ल्ड बैंक ने 376 मिलियन अमरीकी डॉलर बाढ़ के नाम पर बिहार सरकार को दिया हैं मगर बिहार सरकार ने किसी को नहीं बताया। क्या आपको पता हैं?
- इस पोस्ट में मैं बताने जा रहा हूँ की बिहार में बाढ़ किस किस वजह से आती है ? कितने बाढ़ के नाम पर पैसे लुटे गए।
और 3 ऐसे सिस्टम बातयूंगा प्रूफ के साथ की कैसे बाढ़ को रोक सकते हैं।
India Flood Data & statistics
- भारत सबसे ज्यादा flood affected देशों में से एक है, जो चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर आता है।
- flood के कारण वैश्विक मौत की गिनती में दुनिये भर में पांचवां स्थान पर आता है।
- भारत का लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर या दूसरे शब्दों में भारत के Geographical Area का लगभग 1/8 वां flood affected है।
- देश में हर साल flood damage से लगभग 1800 करोड़ रु से अधिक का loss होता है।
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Bihar Flood Data & statistics in Hindi
- भारत में सबसे ज्यादा जो flood आने वाला जो राज्य है वो बिहार है।
- उत्तर बिहार की 76 प्रतिशत आबादी flood की तबाही के खतरे में हमेशा रहता है।
- बिहार का ज्योग्राफिकल एरिया 94163 sq km है और उसमे से लगभग 68800 sq km में यानि 73.06 % बाढ़ में डूब जाता है.।
- भारत के flood affected एरिया का 16.5% क्षेत्र सिर्फ बिहार में है।
देश की कुल flood affected आबादी में से 22.1 फीसदी बिहारी है।
एक मायने में देखा जाए तो बिहार में बाढ़ एक त्राहि माम है, जो अनिवार्य रूप से आती ही है। इसके भौगोलिक कारण हैं जो आगे पूरी डिटेल में बतायूंगा।
मगर पूछता है बिहार की बिहार सरकार ने क्या किया ?
Bihar Flood Damage Data & statistics in Hindi
बिहार में जो flood आने से damage होती है उसके आकड़े बताने जा रहा हूँ। वैसे तो बिहार में flood आज़ादी के कई 100 सालो के पहले से आ रही है मगर बिहार सरकार 1979 से आंकड़े बताना शुरू किया।
- बिहार सरकार के मुताबिक 1979 से आज तक 9500 लोगों की जान बिहार flood ने ली है।
- 1979 से आज तक 25,776 मवेशी और जानवर मारे गए.
- 1979 से आज तक 770 करोड़ हेक्टेयर जमीन बाढ़ के पानी में डूब गई.
- 1979 से आज तक 374 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल खराब हो गई.
- 1979 से आज तक 7969 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है फसलों के खराब होने से.
- 1979 से आज तक 115 करोड़ मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं.
- 1979 से आज तक 4151 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है सार्वजनिक इमारतों के टूटने से.
खाश बात ये है की बिहार की स्थानीय लोगो का कहना है की ये आंकड़े बहुत कम हैं।
अगर मैं बिहार सरकार के आंकड़े को सच मान भी लेता हूँ तो मेरे जेहन में एक सवाल उठता है की अब और कितना मौते चाहते हो साहेब। क्या बिहार सरकार को ये आकड़े छोटी लग रही है।
पूछता है बिहार और कितने आंकड़े चाहिए ?
बिहार में बाढ़ क्यों आती है?
काले ने (1997) की समीक्षा में बताया गया कि उत्तर बिहार के मैदानी इलाकों में पिछले 30 वर्षों के दौरान सबसे अधिक बाढ़ दर्ज की गई है। ये 1997 में बताई गइ थी उसके बाद flood आने के frequency और भी बढ़ी है।
बिहार में बाढ़ क्यों आती है? बिहार में बाढ़ की frequency क्यों ज्यादा हो गए हैं ? इसके 9रीज़न हैं।
- बिहार भौगोलिक विभाग
- वनों की कटाई
- नेपाल की राजनीति
- प्रौद्योगिकी का अभाव
- जलवायु परिवर्तन
- फरक्का बैराज
- जरूरत के हिसाब से बांधने की कमी हो सकती है
- Drainage सिस्टम
- भ्रष्टाचार
Reason 1. Bihar Geographical Division
बिहार का जो ज्योग्राफिकल रचना है वो बहुत ख़राब है और बिहार की भौगोलिक परिस्थिति को समझने के लिए नेपाल की भौगोलिक परिस्थिति को समझना होगा। इसलिए क्योंकि बिहार में सात जिले ऐसे हैं जो नेपाल से सटे हैं।
ये जिले हैं –
- पश्चिमी चंपारण
- पूर्वी चंपारण
- सीतामढ़ी
- मधुबनी
- सुपौल
- अररिया
- किशनगंज।
नेपाल पहाड़ी इलाका है। जब पहाड़ों पर बारिश होती है, तो उसका पानी नदियों के ज़रिये नीचे आता है और नेपाल के मैदानी इलाकों में भर जाता है। नेपाल में कई ऐसी नदियां हैं जो नेपाल के पहाड़ी इलाकों से निकलकर मैदानी इलाकों में आती हैं और फिर वहां से और नीचे बिहार में दाखिल हो जाती हैं। Rest visit Website Indian YouTuber
उदाहरण के लिए-
- नेपाल से निकलने वाली कोसी सुपौल में बिहार में शामिल होती है। वहां से मधेपुरा होते हुए अररिया, पूर्णिया, सहरसा, खगड़िया, मुंगेर होते हुए कटिहार में गंगा नदी में मिल जाती है।
- नेपाल से निकलने वाली बागमती नदी बिहार के सीतामढ़ी में सबसे पहले आती है और वहां से शिवहर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर होते हुए बेगुसराय में आकर बूढ़ी गंडक नदी में मिल जाती है।
- नेपाल से ही निकलने वाली गंडक वाल्मिकीनगर में पहले दाख़िल करती है। हाजीपुर-सोनपुर की सीमा बनाते हुए गंगा नदी में मिल जाती है।
- नेपाल की कमला नदी मधुबनी में सबसे पहले आती है और दरंभगा और सहरसा होते हुए मधेपुरा में कोसी में आकर मिल जाती है।
- नेपाल की कोनकाई नदी किशनगंज के ज़रिये बिहार में आती है और कटिहार होते हुए पश्चिम बंगाल चली जाती है।
- नेपाल से ही निकलने वाली कारछा नदी सीतामढ़ी में सबसे पहले आती है और वहां से दरभंगा,, समस्तीपुर, सहरसा, खगड़िया होते हुए मधेपुरा में कोसी नदी में मिल जाती है।
- मानसून के दौरान उत्तर बिहार में कम से कम पाँच प्रमुख बाढ़-पैदा करने वाली नदियों हैं और जी की बहुत ही खतरनाक हैं – महानंदा नदी, कोशी नदी, बागमती नदी, कमला नदी और गंडक नदी।
महानंद नदी और बुर्की गंडक नेपाल से नहीं आते हैं। This also causes Why Bihar floods every year in Hindi
Reason 2. जलग्रहण क्षेत्रों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई
बिहार में जलग्रहण क्षेत्र (catchment Area) में पेड़ों की लगातार अंधाधुंध कटाई हो रही है। जिसके वजह से silt गाद में वृद्धि हुई है और इसलिए कैचमेंट एरिया में पानी रुकता ही नहीं। कोसी सबसे प्रमुख जलग्रहण क्षेत्र है।
कोसी के कुल जलग्रहण क्षेत्र में से, केवल छोटा क्षेत्र भारत में स्थित है और बाकि नेपाल और तिब्बत में प्रमुख हिस्सा है। कोसी नदी का कैचमेंट एरिया 74,030 वर्ग किमी है। इसमें से 62,620 वर्ग किमी नेपाल और तिब्बत में है।
सिर्फ 11,410 वर्ग किमी हिस्सा ही बिहार में है। मतलब 35% जलग्रहण क्षेत्र बिहार में है और बाकी के 65% नेपाल और तिब्बत में हैं।
नेपाल में दो महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ और भी है , कमला (7,232 km ) और बागमती (14,384 किमी ) जलग्रहण क्षेत्र हैं।
कोसी नदीं के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में औसत वर्षा 1,589 मिमी है जबकि निचले क्षेत्रों में यह 1,323 मिमी है। तो जाहिर सी बात है पहाड़ों पर स्थित नेपाल और तिब्बत में बारिश ज्यादा भयानक होता है और साथ में नेपाल की नदी का औसत वार्षिक गाद भार 92,400 एकड़ फीट है।
इसलिए पानी वहां के कैचमेंट एरिया से बहकर बिहार में स्थित निचले कैचमेंट एरिया में आता है। एक तो यहाँ बिहार का (catchment Area) कम है और दूसरा पेड़ों के नहीं होने की वजह से पानी कैचमेंट एरिया में न रुककर आबादी वाले क्षेत्रों में फैल जाता है। क्यंकि पेड़ों के न होने से वहा पानी रूकती नहीं।
Reason 3. नेपाल छोड़ता है पानी, तो डूब जाते हैं बिहार के कई इलाके
बिहार में बाढ़ का सबसे ज्यादा पानी नेपाल से आता है। नेपाल में पानी इसलिए नहीं टिकता क्योंकि वो पहाड़ी इलाका है। नेपाल में पिछले कई सालों में खेती की ज़मीन के लिए जंगल काट दिए गए हैं। सन् 2002 से 2018 तक नेपाल 42,513 हेक्टेयर वन भूमि गवां चुका है।
जंगल मिट्टी को अपनी जड़ों से पकड़कर रखते हैं और बाढ़ के तेज बहाव में भी कटाव कम होता है। लेकिन जंगल के कटने से मिट्टी का कटाव बढ़ गया है। साथ में पत्थरों का उत्खनन भी हो रहा है, जो नेपाल और भारत में तेजी से हो रहे निर्माण कार्य के लिए किया जा रहा है।
पहाड़ी इलाका में बारिश का पानी रुकने की बजाए तेेजी से बहकर नेपाल के मैदानी इलाके में आ जाता हैं । नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है। इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है।
इन नदियों का लगभग 65% जलग्रहण क्षेत्र नेपाल / तिब्बत में पड़ता है और केवल 35% जलग्रहण क्षेत्र बिहार में है। पेड़ न होने के कारन पहले गाद भर जाती है और पानी का लेवल ऊपर आ जाता है और दूसरा पानी वहा नहीं रुक पाती हैं।
Reason 4. Lack of Technology in Bihar
जब नेपाल के ऊपरी हिस्से में भारी वर्षा होती है तो तराई के मैदानी भागों और निचले भू-भाग में बाढ़ की स्थिति बनती है। एक बड़ी खामी यह है कि नेपाल के ऊपरी इलाकों में भारी वर्षा की सूचना भारत में देर से मिलती है।
भारत व नेपाल की सरकारों ने एक-दूसरे को बाढ़-सूचना देने की व्यवस्था विकसित की, पर इसमें आमतौर पर 48 घंटे का समय लगता है। सोचने की बात है हम 48 घंटे लेते हैं और आपको पता होगा प्रकृति १ सेकंड में पूरी पृथ्वी को नष्ट कर सकती हैं।
Reason 5 Bihar Climate Change
भारत के मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक जून 2019 में बिहार के 14 जिले में सूखा परा था । जून महीने में लू और सूखे के कारण बिहार के एक या दो जिले में धारा 144 लागू कर दी गई थी।
लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि सिंचाई के पानी के लिए भी जमीन में 250 से 300 फीट तक का बोरवेल करना पड़ रहा था । ठीक अगले महीने 2019 बिहार के 13 जिलों को बाढ़ आ गया और जिससे जुलाई के अंत तक 130 मौतें हुईं।
बिहार में आखिर सूखा और फिर बाढ़ क्यों आया ?
प्रकृति तो ऐसे पहले कभी नहीं थी। ठीक उसी तरह आपको मुंबई में भी हुआ। 2019 केरला में भी हुआ मगर केरला में पहले बाढ़ आये थे फिर सूखा। ऐसा इसलिए हो रहा है क्यूंकि climate change हो रहा हैं।
Number of rainy days यानि के बारिश होने वाले दिन साल में काम हो गए है जिसे सूखा होने लगा है और जब बारिश होती है तो intensity के साथ होती है जिसके कारन बाढ़ आ जाती है।
भारत को 70% से अधिक लीची बिहार देता था मगर क्लाइमेट चेंज की वजह से अब 62% देता हैं। एक लीची के स्वस्थ विकास के लिए, तापमान 33 और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। पिछले 4- 5 वर्षों से तापमान 40 से ऊपर है।
उत्तर भारत में आंधी तूफान 50% अधिक सामान्य और 80% लंबा हो गया है।
Reason 6 Farkha Barrage causes floods in Bihar
फरक्का बैराज टाउनशिप मुर्शिदाबाद जिले में फरक्का (सामुदायिक विकास खंड) में स्थित है। निर्माण 1961 में शुरू हुआ था और 1975 में ₹ 156.49 करोड़ (यूएस $ 22 मिलियन) की लागत से पूरा हुआ। ऑपरेशन 21 अप्रैल 1975 को शुरू हुआ। बैराज लगभग 2,304 मीटर (7,559 फीट) लंबा है।
फरक्का बराज सिर्फ बिहार के लिए नहीं भारत के लिए भी चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है। यह नदी के कटाव, और जल जीवन तंत्र के विनाश के लिए भी जिम्मेदार है, जिसके परिणामस्वरूप हिल्सा मछली अब भारतीय नदियों में नहीं पाई जाती हैं।
फरक्का बराज बनने के बाद बिहार में नदी का कटाव बढ़ा है। बैराज की वजह से हर साल लगभग 640 मिलियन टन गाद नदी में जमा हो जाती है। पिछले तीन दशकों में इसके परिणामस्वरूप लगभग 18.56 बिलियन टन गाद जमा हुई है|
बिहार में हिमालय से आने वाली गंगा की सहायक नदियां कोसी, गंडक और घाघरा बहुत ज्यादा गाद लाती हैं। इसे वे गंगा में अपने मुहाने पर जमा करती हैं। इसकी वजह से पानी आसपास के इलाकों में फैलने लगता है। नदी में गाद न हो और जलप्रवाह बना रहे तो ऐसी समस्या आए ही नहीं।
Reason 7 बिहार में जरूरत के हिसाब से बाँध का कम होना
हमारे यहाँ बाँध दो तरीके से बनाते है पहला मिट्टी से और दूसरा concrete. बाँध बनाये जाती है flodding को रोकने के लिए। नदी से पानी बहार ना आये। 1954 में बिहार में 160 किमी तटबंध था। तब 25 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ प्रभावित थी।
अभी करीब 3700 किमी तटबंध हैं लेकिन बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र बढ़कर 68.90 लाख हेक्टेयर हो गया। जिस तरीके से बाढ़ में इजाफा हो रहा है, उस हिसाब से तटबंधों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
Reason 8 Bihar Goverment corruption in flood
बिहार में हर साल बाढ़ आती है और भीषण तबाही मचायी थी. ये आपदा कोई नई नहीं है। आज़ादी के पहले से आ रही है। लाखों के जान-माल का नुक़सान होता है। ऐसा लगता है मानो बाढ़ यहां के लोगों की नियति बन चुकी हो।
भारत के आज़ाद होने के बाद पहली बार 1953 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना शुरू की गई और उसका नाम दिया गया ‘कोसी परियोजना.’
1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू हुई।
इस परियोजना के शिलान्यास के समय यह कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर क़ाबू पा लिया जाएगा। मगर वो 15 साल कभी नहीं आये।
देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने साल 1955 में कोसी परियोजना के शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान सुपौल के बैरिया गांव में सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि, “मेरी एक आंख कोसी पर रहेगी और दूसरी आंख बाक़ी हिन्दुस्तान पर.” उन्होंने सही बोलै था मगर उनका दूसरा आँख हिंदुस्तान पर तो था मगर पहला आँख बिहार पर नहीं था।
1965 में लाल बहादुर शास्त्री द्वारा कोसी बराज का उद्घाटन किया गया। बैराज बना कर नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाहों को एक कर दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियों को मोड़ दिया गया।
परियोजना के तहत समूचे कोसी क्षेत्र में नहरों को बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई। कटैया में एक पनबिजली केंद्र भी स्थापित हुआ जिसकी क्षमता 19 मेगावॉट बिजली पैदा करने की है।
क्या उद्देश्य पूरे हुए?
लेकिन सवाल ये उठता है कि कोसी परियोजना जिन उद्देश्यों के साथ शुरू की गई थी, क्या वे उद्देश्य पूरे हुए?
पहला जवाब मिलेगा, “नहीं.” कहां तो 15 साल के अंदर बिहार में बाढ़ रोक देने की बात कही गई थी, वहीं आज 66 साल बाद भी बिहार लगभग हर साल बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है.
कोसी परियोजना शुरू में 100 करोड़ रुपए की परियोजना थी। जिसे 10 सालों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था।
सुपौल के वीरपुर के पास रहने वाले कृष्ण नारायण मिश्र कहते हैं, “कोसी परियोजना को लेकर जो भी असल में काम हुआ था, इन्हीं 10 सालों के दौरान हुआ। चाहे वह कोसी के दो तरफ़ तटबंध बनाकर पानी को मोड़ना हो, पूर्वी और पश्चिमी कैनाल बनाकर सिंचाई की व्यवस्था करनी हो, या फिर कटैया में पनबिजली घर का निर्माण.”
लेकिन कृष्ण नारायण मिश्र यह भी कहते हैं कि, “उसके बाद के सालों में मरम्मत, नए निर्माण, बाढ़ राहत और बचाव के नाम पर जम कर पैसे का बंदरबांट हुआ। लगभग हर साल इस मद में फंड पास होता है, एस्टिमेट बनता है।
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार अगर पिछले कुछ सालों के दौरान कोसी परियोजना के अंतर्गत बड़े कामों का ज़िक्र करें तो दो योजनाएं बनायी गईं।
पहली योजना बाढ़ राहत और पुनर्वास की थी। जिसके तहत विश्व बैंक से 2004 में ही 220 मिलियन अमरीकी डॉलर का फंड मिला था। उससे तटबंधों के किनारे रहने वाले बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए पक्का घर बनाए जाने थे और ज़मीन देनी थी। कुल दो लाख 76 हज़ार लोगों को चिह्नित किया गया था जिनके मकान बनने थे।
लेकिन मकाम बन पाए मात्र 66 हज़ार के क़रीब। पहले चरण के बाद अब उस योजना को बंद कर दिया गया है।
पूछता है बिहार कि घर कब बनेगा ? बाक़ी का पैसा क्या हुआ?
मुझे वर्ल्ड बैंक की वेबसाइट से पता चला कि अभी भी कोसी क्षेत्र में बिहार कोसी बेसिन डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट नाम से एक योजना चालू है। 2015 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य 2023 रखा गया है। कुल 376 मिलियन अमरीकी डॉलर का प्रोजेक्ट है.”
क्या इसके बारे में बिहारियों को इसके बारे में पता है ? पूछता है बिहार क्यों छिपाया ?
Reason 9. Bihar Drainage system
अब मैं बात करूँगा पटना का। वही पटना जहा मेरा जन्म हुआ था। वही पटना जोमेरी धरकन हैं। 51 वर्षों में पटना में कोई नया ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाया गया।
1975 के बाद अगर पटना में भयानक वाली बाढ़ आया है तो 2019 में आया था मगर खाश बात ये है की इस वाले में भगवान् का कोई हाथ नहीं था। ये बिहार सरकार का देन था। 51 वर्षों में पटना में कोई नया ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाया गया है और साथ में ये भी आपको बता दू की नगर निगम में शहर के ड्रेनेज नेटवर्क का नक्शा नहीं है। वह 2017 के बाद से गायब बताया जा रहा है।
नक्शा नहीं होने के चलते निगम को न तो नालियों की सही-सही जानकारी है और न कैचपिट-मैनहोल की। किसी को मालूम नहीं, पानी किधर से निकलेगा। बिहार में सब कुछ राम भरोशे चल रहा हैं।
Reason 10. Bihar Embankment
बाँध बनाना पहला और सबसे आसान तरीका है बाढ़ को रोकने के लिए। ये मिटटी के भी हो सकते है या फिर कंक्रीट के भी हो सकते है । बाँध बनाने के मतलब होता है नदी की जो एरिया है उसको छोटा करना यानि नैरो करना।
और जब नैरो होता है तो उसमे पानी की बहाव तेज हो जाता हैं। पहली गलती क्या है नैरो करना। और जब भी पानी हिमलाय से आती है तो अपने साथ गाद भी लाती हैं। अब आप अपना दिमाग लगाओ।
जब बाँध बना कर नदी का रास्ता नैरो करते देते है तो गाद वही जम जाता है और इसको कोई निकालता नहीं हैं। तो जाहिर से बात है पानी का लेवल बढ़ेगा और नदी के बहार तो आएगा ही। तब बांध बनाने का कोई फायदा ही नहीं हुआ।
ये दूसरी गलती है। तीसरी गलती ये है की जब बांध बन जाता है तो हमारे अंदर false sense of security आ जाती है और हम बाँध के बगल में जिसको floodplain कहते है वह घर बना लेते है या फैक्ट्री। हम भूल जाते है की इस जगह पर कभी बाढ़ आती थी और इसका गाद दूर तक फैलता था। And this causes Why Bihar floods every year in Hindi
Embankment Breaching
जब कोई बाँध नदी के पानी को रोकने में फेल हो जाता है तो embankment breaching कहते हैं। बाँध फ़ैल होने के दो कारन होते हैं पहला जब गाद भर जाता है और उसके कारण पानी का लेवल बढ़ जाता हैं। पानी ओवरफ्लो होने लगता हैं।दूसरा करना ही बाँध टूट जाना या बाँध में छेद होना जाना।
बाँध में एक छोटा सा भी छेद हो जाता है तो बाँध का कोई फायदा नहीं। चाहे वो बाँध 1 km की हो या 1००० km या 1 लाख km कोई फायदा नहीं। बाँध इतनी जल्दी टूट कैसे जाते हैं – करप्शन। नकली कंक्रीट या कम पैसे वाली कंक्रीट से बानी बाँध होती है ।
- अगस्त 1963 में डलवा में पहली बार तटबंध टूटा था।
- अक्तूबर 1968 में दरभंगा के जमालपुर में तटबंध टूटा था।
- अगस्त 1971 में सुपौल के भटनिया में तटबंध टूटे।
- सहरसा में तीन बार अगस्त 1980, सितंबर 1984 और अगस्त 1987 में बांध टूटे।
- 2008 में कुसहा में बांध टूटा, जिसने भारी तबाही मचाई।
- कमला बलान तथा झंझारपुर में तटबंध टूटे हैं.
ये सब बांधे इसलिए टूटी क्यूंकि अच्छे से नहीं बनाया गया था और साथ में इसकी मरमत समय समय पर नहीं हुआ। तो आखिर इनके नाम पर पैसा कहा जाता हैं।
Bihar Flood Solution
अब सवाल आता है की बाढ़ को कैसे रोके तो इसका जवाब है नेथरलैंड के पास। नीदरलैंड भारत से लगभग 79 गुना छोटा है मगर अमरीका के बाद सबसे अधिक कृषि निर्यात नीदरलैंड से ही होता है।
नीदरलैंड एक ऐसा देश है जिसकी 20 प्रतिशत भूमि समुद्रतल से नीचे है और 50 प्रतिशत समुद्र तल से मात्र एक मीटर ऊपर है, इसी कारण से इसका नाम नीदरलैंड पड़ा. नीदर का अर्थ होता है जमीन जो समुद्रतल से नीचे हो।
31 जनवरी 1953 को आये भयंकर समुद्री तूफान ने देश के तटीय इलाके को ध्वस्त कर दिया। यह नीदरलैंड की सरकार के लिए एक चेतावनी थी। इस आपदा ने 1836 लोगों की जान ली थी।
अब इस मैप को देखे। जो जगह पहले पानी के अंदर डूबी हुए थी उसको वापस ले लिया। मतलब समुन्द्र से reclaim किया गया।
“1992 में, इस देश ने national flood policy अपने सबिधान में रखा। मतलब जैसे हमारे देश में rights to freedom होता है वह बाढ़ के लिए Rights to be protected from flooding हैं। व
हा की सरकार बाढ़ की जिम्मेवारी अपने ऊपर लेती हैं और कहती है की 10,000 साल में आनेवाली intense बाढ़ से भी रक्षा करेंगे। तुलनात्मक रूप से, अमेरिका में, एक 100 साल का बाढ़ मानक हैं।
सिंगापुर ने अपने ड्रैनेज सिस्टम को सुधारने के लिए करीब 30 वर्षों में करीब 9 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। इसकी वजह से पूरे सिंगापुर में बाढ़ प्रभावित इलाके में करीब 98 फीसदी की कमी आई।
1. Room for flow
“हम जल से लड़ते नहीं, हम जल से प्रेम करते हैं, उसे जगह देते हैं।”
जैसे हम लोग बांध बनाते है नदी के बगल में वैसे नेथरलैंड नहीं बनता हैं। वो लोग नदी से दूर बाँध बनाते हैं। मतलब वो लोग नदी को पूरी आज़ादी देते है तुम्हे जैसे बहना है बहो और जिसके कारन गाद जमा नहीं होता।
दूसरा चीझ उनलोगो ने नदी और बांध के बिच में एक छोटा सा जंगल बना दिया। पौधे मिटटी आउट जल को पकड़ कर रखती हैं. तीसरा उनलोगो ने नदी के अंदर खोद के और भी गहरा बना दिया जिसके कारन नदी को space मिल गया मतलब height भी मिल गया।
चौथा काम उनका ये था की नदी के रस्ते में जो भी रुकावट आ रही थी उसको हटा दिया। ऐसी को कहते है free flowing . पांचवा उनलोगो ने पानी स्टोरेज बना दिया
free flowing से मुझे याद आते है GD Aggarwal जी। उनका कहना था गंगा को आज़ादी मिले। उसको अपने मन से बहाने दे। गंगा को बचाने के लिए 111 दिनों से अनशन कर रहे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की 11 अक्टूबर 2018 को मौत हो गई।
GD Aggarwal जी ने आईआईटी से पढ़ा था। आईआईटी का एक प्रोफेसर थे और वहा , उनको बेस्ट टीचर का अवार्ड मिला।
जिसने गंगा के लिए विदेश में पढ़ाई की और देश में आकर गंगा की सफाई के लिए जुट गया। जिसने गंगा के लिए छोड़ दिया और अपना पूरा जीवन गंगा को समर्पित कर दिया।
GD Aggarwal का मांग-
- केंद्र सरकार गंगा सुरक्षा ऐक्ट 2012 बनाए.
- गंगा पर बन रहे और गंगा पर बनाने के लिए प्रस्तावित सभी जल विद्युत परियोजनाओं पर तुरंत रोक लगाई जाए.
- गंगा में बालू की खुदाई पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए.
- गंगा की सुरक्षा के लिए और गंगा से जुड़े मुद्दों को देखने के लिए एक काउंसिल बनाई जाए.
सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी और वो हरिद्वार के मातृ सदन में लगातार अनशन करने के कारन उनकी मौत हो गई। एक और बात बता दू ये वही इंसान है जिन्होंने साबित किया था की गंगा का पानी पवित्र है मतलब गंगा के पानी में नुट्रिशन है मगर गंगा के किनारे इंडसट्री खोलने से 100 km के अंदर में उसका नुट्रिशन ख़त्म हो जाता हैं।
Sponge city to prevent Bihar floods
Sponge city का शायद आपने नाम कभी नहीं सुना होगा। Sponge city एक तरह का स्टोरेज होता है शहर में. बारिश को पानी को सुख लेता हैं। उसको बाद में के सिंचाई के लिए और घरेलू उपयोग के लिए वर्षा जल का पुन: उपयोग किया जा सकता है। यह शहरी पैमाने पर एक स्थायी जल निकासी प्रणाली का एक रूप है।
स्पंज सिटी पहल को सबसे पहले बनाने वाला चीन है 2015 में । देश अपने शहरी शहरों के 80 प्रतिशत हिस्से में 70 प्रतिशत वर्षा जल की कटाई और पुन: उपयोग की योजना चीन करता है। स्पंज शहरों के निर्माण में भारी निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके बहुत सारे लाभ हैं।
Sponge city का लाभ
- समग्र जल गुणवत्ता में सुधार करता है।
- वर्षा जल पर कब्जा कर लिया जाता है और उसका पुन: उपयोग किया जा सकता है।
- बाढ़ की संभावना को कम करता है।
- रेलवे की समस्याओं को कम करता है।
- शहरी गर्मी द्वीप तीव्रता को कम करता है।
Vetiver Plants to prevent Bihar floods
वेटिवर का उपयोग दुनिया भर में बाढ़ नियंत्रण उपाय के रूप में किया गया है, क्योंकि न केवल विस्तारित अवधि के लिए बाढ़ से बच सकता है, इसके कठोर स्तंभ तने पानी के प्रवाह को धीमा करने और गाद को पकड़ने में सक्षम हैं।
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